संवाददाता: सिद्धार्थ कुंवर, नमस्कार भारत
Banne ki Dulhania: शकील अहमद सैफ की कहानी पर आधारित और आलोक शुक्ला द्वारा नाट्य रूपांतरित, निर्देशित तथा परिकल्पित नाटक “बन्ने की दुल्हनिया” ने 1 सितम्बर की शाम नई दिल्ली के LTG सभागार में बैठे 150 से अधिक दर्शकों का दिल जीत लिया।
Banne ki Dulhania:पंचानन पाठक स्मृति हास्य नाट्य उत्सव में प्रसंगिक संस्था की ओर से प्रस्तुत सवा घंटे के नॉन स्टॉप कॉमेडी प्ले बन्ने की दुल्हनिया में शामिल करीब 23 कलाकारों ने ऐसा शमा बांधा कि कब सवा घंटा गुजर गये पता नहीं ही चला ।
कथानक
Banne ki Dulhania: एक वृद्घ पुरुष द्वारा अपनी पहली बीबी के इंतकाल के बाद दूसरा निकाह करने की कोशिश में बनते बिगड़ते परिवारिक और सामाजिक रिश्तों में जिस तरह हास्यस्पद स्थितियों का निर्माण होता है उसे बखूबी दिखाया गया है।
अभिनय
मुख्य किरदार बन्ने खाँ के किरदार में मृदुल कुमार और सूत्रधार बन्ने के दोस्त मासिता के किरदार में टेक चंद , पूरे नाटक में अपनी अदायगी से जान डालते नज़र आते हैँ। जहाँ बन्ने की बेटी -बेटियों के रोल में अभिषेक सेंगर, सौरभ कुमार, निकिता करायत और कविता पूरी तरह से साथ देते नज़र आते हैँ। ऐसे ही सिमरन (बड़ी भाभी), अंजलि (बहु) , खुशबु (सहेली)’ आदित्य रॉय ( राजा) भी खूब जमे हैँ।
तो अजनबी के रूप में वागीश शर्मा, छोटे लड़के/पेड़ में निखिल कुमार , व्यक्ति तीन में विनय शर्मा, हारून रसीद में जीतेन्द्र सिंह, शबनम की अम्मी में विजय लक्ष्मी, रहमान में प्रताप सिंह, बड़े चाचा में शिब्बू गाज़ीपुरी, शबनम में मेघा सैनी ने खूब रंग जमाया।
इसी तरह परी में नीना सहा, पति में अंशु भटनागर,व्यक्ति दो में प्रणय सिंह, व्यक्ति एक में आनन्द कुमार, सरफ़राज में अमित राज ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया।
म्यूजिक
नाटक में हारमोनियम ( शिब्बु गाज़ीपुरी) और ढोलक ( टेक चंद) का अच्छा इस्तेमाल किया गया है।
नाटक में एक ओरिजनल सांग है बन्ने की दुल्हनिया बनेगी -बनेगी, जो दो बार रिपीट होता है, ये काफी अच्छा बन पड़ा है, इसी के साथ 3 ड्रीम सांग हैं जो फिल्मी हैँ लेकिन दर्शकों को पूरा मज़ा देते हैं ।
सेट
मंच सज्जा प्रतिकात्मक थी जहाँ दो घरों के दरवाजे और खिड़कियां आमने सामने की विंग्स पर बनी थीं तो सामने एक कोने पर ड्रेसिंग टेबल बनाई गई थी, इसे टेक चंद ने संभाला था जो ठीक ठाक सा था ।
लाइट & साउंड
प्रकाश व्यवस्था को संभाला सुनील चौहान ने जो अच्छी थी तो साउंड को विकास कुमार ने, साउंड में एक दो स्थानों पर अतिरेक था जिसे बैलेंस करने की ज़रूरत है ।
वस्त्र सज्जा ( विजय लक्ष्मी/ नीतू कुमारी ) और रूप सज्जा (मेघा सैनी) नाटक के परिवेश के अनुसार थी।
निर्देशन
पूरा मंच और नाटक का हर सीन बेहतरीन तरीके से डिजाइन किया गया लगता है निर्देशक आलोक शुक्ला द्वारा जिसमें पेड़ वाला सीन तो अल्टीमेट था, साइकिल को अम्पाला कार बनाने आइडिया अच्छा था। नाटक के निर्देशन के साथ चुंकि शकील अहमद सैफ की कहानी को ड्रामाटाईज भी आलोक शुक्ला ने किया था तो उनकी संवादों में पकड़ साफ नज़र आती है हालांकि कई स्थानों में चुटीली लाइन के बाद हास्य न पैदा कर सकना कहीं न कहीं नये कलाकारों का किरदारों द्वारा निभाना भी लगा।पूरे नाटक का प्रोडक्शन प्रताप सिंह ने बखूबी निभाया ।
प्रस्तुति के अंत में पूरी टीम को पंचानन पाठक स्मृति हास्य नाट्य उत्सव के आयोजकों की ओर से प्रमाणपत्र दिये गये ।
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