संवाददाता: आलोक शुक्ला, नमस्कार भारत  

महान फिल्मकार अकीरा कुरोसोआ ने महान फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्मों के बारे में एक बात कही थी कि जिसने रे की फिल्में नहीं देखी उसने मानो सूरज और चांद नहीं देखा। रंगमंच की दुनिया में भी ऐसा ही है कि जिसने हबीब तनवीर साब के नाटक नहीं देखें उसने मानो जीवन जिया ही नहीं।

एक अरसे के बाद विश्व रंगमंच की महान शख्शियत हबीब तनवीर द्वारा लिखित, निर्देशित और संगीतबद्ध किया हुआ ऐसा ही उनका एक कालजयी नाटक “आगरा बाज़ार” दिल्ली में हो रहा है। इस नाटक की 12  अप्रैल को दिल्ली के कमानी सभागार शाम सात बजे सफ़ल प्रस्तुति हुई, अब इसके शो 13 अप्रैल को शाम चार और सात बजे तथा 14 अप्रैल को शाम साढ़े छः बजे गुरुग्राम के एपिक सेंटर में हो रहे हैं।

आम जीवन से जुड़ी नज्मों को लिखने के लिए आगरा के मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी के जीवन पर आधारित आगरा बाज़ार को सबसे पहले आज से सत्तर साल पहले हबीब तनवीर साब ने 1954 में जामिया मिलिया के कुछ शिक्षकों, छात्रों और ओखला गांव के कुछ लोगों के साथ नज़ीर अकबराबादी की कविताओं पर छोटा सा रूपक तैयार किया, जो लोगों को बहुत पसंद आया दिल्ली किया था तब इसकी अवधि महज आधे घंटे की थी लेकिन फिर समय के साथ इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए हबीब तनवीर साब ने इसे ढाई घंटे के एक पूर्णकालिक नाटक में परिवर्तित किया।

 नाटक मूल रूप से बाजार में ककड़ीवाले ( मनहरण गंधर्व) लड्डू वाले ( इमरान अली) और तरबूज वाले (सतीश व्याम) के बीच की नोंक झोंक से आगे बढ़ता है जहां ये बिक्री न होने से परेशान हैं और इसी जतन में वे अपनी ककड़ी, लड्डू और तरबूज के लिए नज़्म लिखाना चाहते हैं।

बीच बाज़ार के एक किनारे पतंग की दुकान तो दूसरी ओर एक किताब की दुकान तो ठीक बाजार में ऊपर एक तवायफ के कोठे से हबीब साब नाटक में उस समय के परिवेश को बखूबी दर्शाते हैं।

सूत्रधार की तरह दो फकीर( मनोज संतोषी और पुरुषोत्तम भट्ट) बीच बीच में आकर नजीर की नज्मों को गाते हुए दृश्यों को आगे बढ़ाते हैं तो ऐसे ही नाटक में मेले और होली के गीत और नृत्य नाटक को एक ऊंचाई प्रदान करते चलते हैं।

तारीफ की बात ये कि पीढ़ी दर पीढ़ी कलाकार बदलते रहे पर नाटक वही रहा। अब इसे अपने नए पुराने कलाकारों के साथ हबीब तनवीर साब की रंग संस्था नया थियेटर की ओर से उसके वर्तमान निदेशक, संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त प्रसिद्द रंगकर्मी रामचंद्र सिंह के मार्गदर्शन में करते हैं।

इस नाटक के सबसे पुराने कलाकार पुरुषोत्तम भट्ट हैं जो पिछ्ले पचास साल से कर रहे हैं, पहले भालू के किरदार से शुरू करते हुए आज वे हमीद के साथ फ़कीर का रोल करते हैं, उनके साथ दुसरे फकीर का रोल करते हैं भाभी जी घर पर हैं के मशहूर लेखक मनोज संतोषी जो पिछ्ले बीस साल से इसे कर रहे हैं, ऐसे ही ब्रह्मण और अजनबी की भूमिका में आलोक शुक्ला एवम् खबीस के रोल में साबिर खान भी क़रीब बीस साल से अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं।

शायरों की महफिल से सजी किताब की दुकान में बैठे हेमंत मिश्रा और वामिक अहमद अब्बासी क़रीब तीस साल से अपनी भूमिका निभा रहे हैं, किताब की दुकान के मौलवी राणा प्रताप सेंगर भी काफ़ी सालों से अपनी भूमिका निभा रहे हैं, इन सबके बीच सबसे वृद्ध शायर ( तजकिरानवीस) इमरान खान नए जुड़े कलाकार हैं।

ऐसी ही दुसरे कोने में सजी पतंग की दुकान में पतंग वाले की भूमिका को कई सालों से योगेश तिवारी निभा रहे हैं लेकिन उनकी दुकान पर आए दोस्त बेनी प्रसाद की भूमिका को तीस साल से पद्म श्री अनूप रंजन पांडेय निभाते आ रहे हैं।

नाटक में घड़े बेचने की भूमिका में शैलेंद्र जैन भी करीब तीस साल से अपनी भूमिका निभा रहे हैं, नाटक में पुलिस वाले की भूमिका के साथ मंच सज्जा तथा प्रकाश संयोजन में धन्नुलाल सिन्हा भी करीब बीस साल से अपनी भूमिका को बखूबी निभा रहे हैं । दूसरे पुलिस वाले का रोल नए कलाकर उत्कर्ष खरे कर रहे हैं।

नाटक में हिजड़ों के रोल में नए कलाकार अभिषेक विश्वकर्मा के साथ जलेश्वर ने जान डाल दी।शोहदा की भूमिका में राहुल जाधव और तवायफ की भूमिका में प्रियंका शर्मा तथा मंजूर हुसैन की भूमिका में अंकुर, गंगाप्रसाद की भूमिका में प्रदीप वर्मा, कोतवाल की भूमिका में नाटक के वर्तमान निदेशक रामचंद्र सिंह ने बखूबी अपनी भूमिका निभाई।

बंदर और बंदरिया की भुमिका में तुष्टि कौरव विदित कौरव तथा मदारी की भुमिका मन्ना लाल गंधर्व ने बखूबी अपने रोल को निभाया।

कुल मिलाकर सत्तर साल बाद भी हबीब तनवीर साब का नाटक आज भी दर्शकों को बांधे रखने में सफल है। इस नाटक की ही ये मकबूलियत है कि इसे बार बार फ़िर पुनर्जीवित किया जाता है। इस बार इसे इसी साल दस फ़रवरी को संगीत नाटक अकादमी और पोर्ट ब्लेयर संस्कृति विभाग ने रिवाइव किया और अब इसे आगे बढ़ाते हुए, नाटक के ही वरिष्ठ कलाकार हेमंत मिश्रा और उनकी कंपनी ने दिल्ली और गुडगांव में इसके शोज करवा रहे हैं।

बता दें कि इस नाटक में ज्यादातर कलाकार व्यक्तिगत रूप से काफ़ी अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन जब भी इसका शो करना होता है तो मुंबई, दिल्ली भोपाल और छत्तीसगढ़ के कलाकार जुट जाते हैं फिर वो चाहे नाटक में बड़ी या बेहद छोटी भूमिका कर रहे हों। इसे ही हबीब तनवीर साब का जादू कह सकते हैं जिसे रामचंद्र सिंह बखूबी अपने कुशल नेतृत्व में बिखेर रहे हैं।
(समीक्षक हबीब तनवीर साब से जुडे हुए वरिष्ठ रंगकर्मी लेखक निर्देशक और पत्रकार हैं)

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