संवाददाता अनु सैनी, नमस्कार भारत

मुज़फ्फरनगर। शहर की पहचान बन चुकी कमला नेहरू वाटिका (कंपनी बाग) आज विवादों के केंद्र में है। नगर पालिका प्रशासन द्वारा विकास कार्यों के नाम पर यहां दर्जनों हरे-भरे, फलदार पेड़ काट दिए गए हैं। इस कार्रवाई ने नागरिकों के बीच गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। लोगों का कहना है कि यह “विकास नहीं, बल्कि विनाश” है।

वाटिका में रोज़ाना सैकड़ों लोग सैर और व्यायाम के लिए आते हैं। स्थानीय नागरिकों ने कहा कि जहाँ एक ओर सरकार पर्यावरण बचाने के लिए “एक पेड़ मां के नाम” जैसे अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर अधिकारी भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के कारण हरियाली की आहुति दे रहे हैं।

“एक पेड़ मां के नाम” — हरियाली का संकल्प, लेकिन हकीकत उलट

प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया “एक पेड़ मां के नाम” अभियान हर नागरिक को अपनी मां के नाम पर एक पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण संतुलन बनाए रखना और पृथ्वी को हराभरा बनाना है। इस मिशन पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और हरित वातावरण मिल सके। लेकिन विडंबना यह है कि जिन विभागों पर इस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी है, वही अपनी नीतियों और लालच के चलते हरे पेड़ों को बलि चढ़ा रहे हैं।

नागरिकों के तीखे सवाल

स्थानीय लोगों ने नगर पालिका प्रशासन से कई सवाल उठाए हैं —

अगर विकास कार्य जरूरी था, तो पेड़ों को बचाने की योजना क्यों नहीं बनाई गई?

क्या नगर पालिका ने वन विभाग या पर्यावरण विभाग से अनुमति ली थी?

क्या हरे फलदार पेड़ काटना “स्मार्ट सिटी” या “हरित मिशन” का हिस्सा है?

बाग में घूमने आए लोगों ने कहा, “यह वाटिका सिर्फ पेड़-पौधों का समूह नहीं, बल्कि हमारी यादों और भावनाओं का हिस्सा है। यहाँ हमने अपने बचपन के पल जिए हैं — अब उसे नष्ट किया जा रहा है।”

भ्रष्टाचार के साए में विकास

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि यह पूरा मामला विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का उदाहरण है। उनका कहना है कि ठेकेदारों और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से हरे पेड़ों की बलि दी जा रही है, ताकि निर्माण सामग्री और बजट से मोटी रकम वसूली जा सके।

जनता की अपील

मुज़फ्फरनगर के नागरिकों ने प्रशासन और मुख्यमंत्री से अपील की है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए, दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और कमला नेहरू वाटिका की हरियाली को फिर से बहाल किया जाए। एक ओर सरकार “एक पेड़ मां के नाम” का संदेश देकर हर नागरिक को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही है, वहीं दूसरी ओर उन्हीं के अधीन अधिकारी संवेदनहीनता की हदें पार कर रहे हैं।

अब जनपदवासी यही सवाल पूछ रहे हैं —

“मां के नाम पर लगाए गए पेड़ आखिर किनके नाम पर काटे जा रहे हैं?”

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