संवाददाता: कुमार विवेक,नमस्कार भारत

 बिहार में  1996 से लेकर 2019 तक चार निर्दलीय उम्मीदवार ने अपने भाग्य का सितारा चमकाते हुए चुनावी दांव खेलते हुए  लोकसभा संसद तक का सफर तय कर चुके हैं। 2024 में किसकी किस्मत आसमान चूमेगी ,यह तो चुनावी परिणाम ही तय करेगा।

एक निर्दलीय उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में हैं, जिन्होंने जबरदस्त टक्कर दी है। उनके बारे में भी आपको बताएंगे, इससे पहले 1996 से 2019 तक के निर्दलीय प्रत्याशी के सफर पर चर्चा करते हैं।

बिहार में जब-जब वोटिंग प्रतिशत में कमी हुई, निर्दलीय प्रत्याशियों की किस्मत चमकी है। ऐसा हम आंकड़ों के गणित पर कह रहे हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव में पिछले  चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई हैं और एक लोकसभा सीट पर तो काफी दिलचस्प मुकाबला भी देखने को मिला है।

बिहार में प्रथम और दूसरे चरण के लिए हुए मतदान में वोटर्स ने अच्छी दिलचस्पी नहीं दिखाई है। बचे हुए चरणों में क्या होता है, यह तो वक्त ही बताएगा। उससे पहले हम लोग जानते हैं कि आज तक किस निर्दलीय उम्मीदवार की कम वोटिंग होने पर किस्मत चमकी है।

यह साल 2009 के लोकसभा चुनाव की बात है, जब कम मतदान होने पर बांका लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह और सीवान लोकसभा सीट से ओम प्रकाश यादव ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी। उस साल (2009) में वोटिंग प्रतिशत 48.7 रहीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले 10 प्रतिशत कम मतदान दर्ज की गई थी।

1999 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट से राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी ताल ठोकी थी। पिछले चुनाव के मुकाबले एक प्रतिशत वोट कम पड़े थे। पप्पू यादव ने चुनाव में जीत दर्ज की थी।

1996 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रमेंद्र कुमार ने जीत दर्ज की थी। 1996 के लोकसभा चुनाव में 60.8 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। पिछले चुनाव के मुकाबले 7 फिसदी कम मतदान हुई थी। इस बार के चुनाव में एक बार फिर पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनावी ताल ठोकी है और पूर्णिया लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिली है।

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