संवाददाता: राहुल चौधरी, नमस्कार भारत
एक ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों और कुछ सीक्रेट डाक्यूमेन्ट के आधार पर आशंका जाहिर की है कि हो न हो पाकिस्तान में बीते तीन सालों में आतंकियों की जो टार्गेट किलिंग हुई है, उसके पीछे भारत की खुफिया एजंसी रॉ का हाथ हो।
द गार्डियन अखबार का दावा है कि ऐसा कहने के पीछे उसके अपने ‘सबूत’ हैं जो पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों ने उन्हें मुहैया कराये हैं। गार्डियन के अनुसार अपने स्तर पर भी उन्होंने इन घटनाओं की पड़ताल की है जिसमें पाकिस्तानी अधिकारियों का दावा बिल्कुल ‘आधारहीन नहीं’ लगता है। गार्डियन का दावा है कि ‘पाकिस्तान में रहस्यमय बंदूकधारियों द्वारा की जानेवाली टार्गेट किलिंग का संदेह पहले भी भारत पर होता रहा है। लेकिन यह पहली बार है कि उपलब्ध कागजात इस ओर इशारा कर रहे हैं कि पाकिस्तान में जो टार्गेट किलिंग हुई हैं उसके पीछे भारतीय खुफिया एजंसी ‘रॉ’ का हाथ है। अखबार का दावा है कि इस संबंध में पहली बार उसने भारतीय खुफिया अधिकारियों से बात भी की है। ब्रिटिश अखबार का दावा और पड़ताल एक ओर, लेकिन उसके इस दावे से पाकिस्तान ही नहीं भारत में भी हलचल तो हुई है। भारत में इस समय आम चुनाव चल रहे हैं और ऐसे समय में अगर यह खबर आती है कि मोदी सरकार पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को मार रही है तो इसका सीधा लाभ मोदी को ही होगा। इसीलिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक टीवी इंटरव्यू में यह कहकर रहस्य को और गहरा कर दिया है कि “घर में घुसकर मारेंगे।”
इसी तरह चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “तीन दिन पहले ब्रिटेन के एक सम्मानित अखबार ने दावा किया है कि 2020 से लेकर अब तक पाकिस्तान में 20 खतरनाक आतंकवादियों की टार्गेट किलिंग हुई है जिसके पीछे भारत का हाथ हो सकता है। हम नहीं जानते कि अखबार किस आधार पर यह दावा कर रहा है लेकिन यह नया भारत है जो यह जानता है कि अपने लोगों और अपनी सीमाओं की सुरक्षा कैसे करनी है।”
बहरहाल, चुनावी बयान से अलग इस बात की पड़ताल जरूरी है कि क्या भारत ने पाकिस्तान में घुसकर 20 ऐसे आतंकियों को मार गिराया है जो किसी न किसी रूप में भारत में आतंकवाद फैलाने में लिप्त रहे हैं। पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों और दस्तावेजों के हवाले से गार्डियन अखबार का दावा है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों की यह टार्गेट किलिंग पूरी तैयारी के साथ की गयी है।
शुरुआत में पाकिस्तान के अधिकारियों में भी इस बात को लेकर भ्रम था कि वो अज्ञात बंदूकधारी कौन हैं जो चुन चुनकर कट्टरपंथी मौलानाओं को शिकार बना रहे हैं। लेकिन फिर जब उन्होंने जांच की तो इसके पीछे “भारत का हाथ पाया।” टार्गेट किलिंग पाकिस्तान में आये दिन की बात है। सिन्ध से लेकर खैबर तक आये दिन कोई न कोई टार्गेट किलिंग का शिकार होता रहता है। कभी कोई हिन्दू डॉक्टर इसका शिकार बनता है, कभी कोई सिख, तो कभी आपसी रंजिश के कारण कोई मुल्ला मौलवी या आम शहरी।
लूटमार और छिनैती पाकिस्तान का सबसे बड़ा असंगठित कारोबार है इसलिए कई दफा इस लूटमार और छिनैती के चक्कर में भी बाइक सवार अपराधी लोगों पर गोलियां बरसाकर उनकी जान ले लेते हैं।
पाकिस्तान के ऐसे माहौल में अगर कुछ ऐसे लोगों की टार्गेट किलिंग हो जाती है जिनको खुद पाकिस्तान के एस्टैब्लिशमेंट का संरक्षण प्राप्त हो तो सवाल उठता ही है कि आखिर कौन है जो यह कर रहा है?
इसके पीछे दो ही संभावना हो सकती है। पहली यह कि कोई बाहरी एलिमेन्ट किसी खास मकसद से इन्हें रास्ते से हटा रहा है और दूसरा यह कि खुद पाकिस्तान की कुख्यात एजंसी आईएसआई ही उन्हें ठिकाने लगा रही हो।
अगर पहली संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता तो दूसरी संभावना को भी खारिज नहीं किया जा सकता। आईएसआई अपने यहां मुल्ला मौलवियों का आतंकवाद के लिए इस्तेमाल करने और फिर उन्हें रास्ते से हटा देने में माहिर रही है। अफगान तालिबान तैयार करने में अहम भूमिका निभानेवाले मौलाना शमीउल हक हों या तहरीक ए लब्बैक चलानेवाले खादिम हुसैन रिजवी। एक को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली से मार दिया और दूसरा ‘अचानक हुए रहस्यमय बुखार’ से आनन फानन में मर गया।
भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधि करनेवाला लश्कर चीफ हाफिद सईद हो या जैश ए मोहम्मद का आतंकी मौलाना मसूद अजहर। बीते लगभग पांच सात सालों से ये दोनों पिक्चर से गायब हैं। हाफिज सईद के बारे में बताया जाता है कि उसे आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का दोषी पाये जाने पर 78 साल की सजा दी गयी है और वो जेल में है।
लेकिन कहा यह जाता है कि दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद और मसूद अजहर को आईएसआई और फौज ने ही छिपा रखा है और उनकी सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक लगा रखी है।
इसके पीछे मुख्य कारण फाइनेन्सियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) का दबाव है जिसने लंबे समय से पाकिस्तान की आतंकी नीति के कारण उसे ग्रे लिस्ट में बनाये रखा है। एफएटीएफ का कहना है कि जब तक वह अपने यहां से संचालित आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगाता है उसे लोन मिलने और पूंजी निवेेश के लिए सुरक्षित देश नहीं माना जा सकता। तो क्या पाकिस्तान खुद ही अपने यहां के आतंकियों का सफाया भी कर रहा है और भारत की ओर निशाना साधकर अपना दामन भी बचा रहा है?
हालांकि यह मानने में एक समस्या यह है कि जो संभावित टार्गेट हो सकते हैं उनमें से कुछ ने पाकिस्तानी फौज और आईएसआई से अपने लिए सुरक्षा की मांग की है। कुछ को तो निगरानी में रखा भी गया है। इसलिए यह संदेह पैदा होता है कि अगर पाकिस्तान खुद ही अपने यहां आतंकियों की टार्गेट किलिंग करवाकर उन्हें खत्म कर रहा है तो फिर उन्हें सुरक्षा क्यों दे रहा है?
इस पूरे मामले में एक बात और गौर करने लायक है कि पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले से अखबार ने दावा किया है कि जो लोग टार्गेट किलिंग करवा रहे हैं उनका बेस यूएई में है। वहीं रहनेवाले पाकिस्तानी या अफगानी मुसलमानों को पैसा देकर पाकिस्तान भेजा जा रहा है जो आतंकियों की टार्गेट किलिंग कर रहे हैं।
पाकिस्तानी अधिकारियों का यूएई का नाम लेना भारत-यूएई संबंधों में दरार डालने का प्रयास भी हो सकता है। पाकिस्तान से यूएई ने लगभग पूरी तरह से दूरी बना ली है और मोदी कार्यकाल में यूएई भारत संबंध बहुत बेहतर स्थिति में हैं। ऐसे में यह भी हो सकता है कि खुद आईएसआई एक ग्रैंड प्लान के तहत एक तीर से दो शिकार कर रही हो।
पाकिस्तान अपने इस आरोप से यह भी साबित करने का प्रयास कर सकता है कि कनाडा में सिख अलगाववादी निज्जर की हत्या के पीछे भी भारत का हाथ है, क्योंकि वह अपने दुश्मनों को उन देशों में जाकर मार रहा है, जहां वो छिपे हुए हैं। फिर चाहे वह कनाडा हो या पाकिस्तान। मोदी सरकार में देश के दुश्मनों से निपटने का तरीका बदल गया है। हालांकि जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने यह आरोप लगाया था उस समय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बहुत सधे हुए शब्दों में कहा था कि भारत ऐसी गैर कानूनी कार्रवाईयों में विश्वास नहीं करता है।
बहरहाल, होने के लिए कुछ भी हो सकता है। खुफिया एजंसियों की दुनिया में ऐसे खेल चलते रहते हैं। कौन किसके खिलाफ क्या चाल चल रहा है यह उनके अलावा कोई जान नहीं सकता। लेकिन इस प्रकरण में इतना तो हुआ है कि पाकिस्तान से लेकर यूरोप और कनाडा तक जो भारत के दुश्मन हैं वो मारे जा रहे हैं। भारत देश के लिए यही शुभ संकेत है।