संवाददाता: सिद्धार्थ कुंवर, नमस्कार भारत

वामा अकादमी  की झारखंड इकाई एवं अनुस्वार बाल संगमन के द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विषय था-“डा संजीव कुमार के बाल साहित्य के आयाम”। परिचर्चा में भाग लिया प्रसिद्ध वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा विमला भंडारी, वरिष्ठ पत्रकार एवं अनवरत पत्रिका के संपादक श्री दिलीप कुमार तेतरबे, जवाहर-लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान के संस्थापक सचिव श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा, डा अपर्णा तथा डा अलका अग्रवाल सिग्तिया ने।

डॉ विमला भण्डारी ने कहा कि बाल साहित्य एक प्रकार की देश सेवा है। देश  केविकास एवं नव निर्माण के लिए नई पीढ़ी को तैयार करने का काम बाल साहित्य के माध्यम से किया जाता है। नई पीढ़ी को समृद्ध बनाने के लिए यह अब भी काम आता है । संजीव कुमार का बाल साहित्य बहुत समृद्ध है।उन्होने अब तक 32 किताबें मौलिक रुप से सृजित की हैं जिसमें दो नाटक संग्रह है, सोलह बाल काव्य संग्रह, तीन बाल उपन्यास, व तेरह कहानी संग्रह है।इसके अतिरिक्त उन्होंने तैंतीस पुस्तकों  का संपादन भी किया है ।इस प्रकार बाल साहित्य की पैंसठ पुस्तकों  का उन्होंने अवदान किया है। उन्होंने अपने अनुभवों का ज़िक्र करते हुए डा संजीव को एक सूक्ष्म दृष्टि वाला संवेदनशील बाल साहित्यकार बताया ।

 श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा ने अपने वक्तव्य में डॉ संजीव द्वारा बच्चों के लिए किए जा रहे कार्यों का लेखा जोखा प्रस्तुत किया और भविष्य में उनके कार्यों से होने वाले लाभों का ज़िक्र भी किया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य को जन जन तक पहुँचाने के लिये वह न केवल एक व्यक्ति, लेखक और प्रकाशक के रूप में ही कार्य कर रहे अपितु “रिवाइव एंड थ्राइव” जैसे कार्यक्रमों के द्वारा साहित्य को बच्चों तक पुस्तकालयों के माध्यम से पहुँचाने का भी बीड़ा उठाया है। उनकी यह सक्रियता उन्हें अन्य बालसाहित्यकारों से अलग एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ काम करने की जिजीविषा प्रदान करता है ।

श्री दिलीप तेतरबे ने कहा कि डा संजीव की सूक्ष्मता बातों और भावों तक विस्तृत देखी जा सकती हैं। डॉ अपर्णा ने अपने वक्तव्य में डॉ संजीव के बाल काव्य पर अनुशीलन प्रस्तुत किया ।

श्रोताओं में से श्रीमती प्रभा पारीख, डा विमला व्यास व डा भारती सिंह आदि ने भी अपने अपने संक्षिप्त वक्तव्य प्रस्तुत किये। अंत में डा संजीव ने वक्ताओं और श्रोताओं को धन्यवाद दिया और आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम सफल रहा।

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