संवाददाता: शैली माथुर, नमस्कार भारत

 India Netbooks:  विगत रविवार को नई दिल्ली के मयूर विहार स्थित रिवरसाइड क्लब में इंडिया नेटबुक्स द्वारा प्रकाशित ‘बोनसाई बनाने की कला’ नामक व्यंग्य संग्रह का लोकार्पण हुआ एवं इस पर सार्थक परिचर्चा भी हुई।

   India Netbooks:   इस लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री सुरेश कांत ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ संजीव कुमार एवं युवा व्यंग्यकार रणविजय राव की उपस्थिति रही। पुस्तक के लेखक वरिष्ठ साहित्यकार अश्विनी कुमार दुबे अपने लेखकीय वक्तव्य के लिए उपस्थित थे।  कार्यक्रम का कुशल संचालन किया युवा साहित्यकार श्रीमती शशि पांडे ने।

    India Netbooks:  पुस्तक लोकार्पण के पश्चात अपने वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश कांत ने एक कथा के माध्यम से श्रोताओं की उपस्थिति को रेखांकित करते हुए अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि अश्विनी दुबे हमारे समकालीन लेखक हैं और हम इन्हें पढ़ते रहे हैं। उन्होंने संग्रह के आलेख ‘फाइल महिमा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे देश के सरकारी दफ्तरों में आम आदमी किस तरह से चप्पल घिसटता रहता है फिर भी उसका काम नहीं होता, इस विसंगति को बड़े ही जोरदार ढंग से उठाया है। उन्होंने कुछ अन्य आलेखों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि पुस्तक पठनीय व्यंग्य आलेखों से भरपूर है।

           कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के यशस्वी संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने अपने वक्तव्य में कहा कि इसके पहले भी अश्वनी दुबे जी के अनेक व्यंग्य संग्रह आ चुके हैं।  यह संग्रह भी समाज एवं देश के संस्थानों में एवं हमारे पास परिवेश में व्याप्त विसंगतियों को पाठकों के समक्ष रखने का सफल प्रयास है। उन्होंने संग्रह के प्रतिनिधि आलेख ‘बोनसाई बनाने की कला’ के एक अंश का पाठ भी किया और कहा कि लोगों को बौना बनाने, बोनसाई बनाने की प्रवृत्ति आम है जिसे अश्वनी दुबे ने बड़े ही सधे अंदाज में प्रस्तुत किया है।

           कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ संजीव कुमार ने अश्वनी दुबे जी की गहरी संवेदना का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि  संग्रह के कई आलेखों में देश एवं समाज की वस्तुस्थिति को व्यंग्यात्मक अंदाज में रखा गया है। उन्होंने कहा कि इन आलेखों से यह भी पता चलता है की व्यवस्था में किस-किस तरह की और किस हद तक विसंगतियां व्याप्त हैं। डॉ संजीव ने जोर देते हुए कहा कि व्यंग्य केवल गद्य ही नहीं, पद्य में भी उल्लेखनीय व्यंग्य देखने को मिलते हैं।

          युवा साहित्यकार रणविजय राव ने अपने वक्तव्य में कहा कि अश्विनी दुबे जी एक वरिष्ठ साहित्यकार-व्यंग्यकार हैं और इस संग्रह के आलेख पढ़कर युवा पीढ़ी यह सीख सकती है कि व्यंग्य किस तरह से परोसा जा सकता है। श्री राव ने संग्रह के कई आलेखों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे समाज, शिक्षा जगत, राजनीति, साहित्य, पत्रकारिता  आदि कई क्षेत्रों में मौजूद अंतर्विरोधों को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का सफल एवं सार्थक प्रयास किया गया है।

          अपने लेखकीय वक्तव्य में श्री अश्वनी दुबे ने परसाई का उल्लेख करते हुए कहा कि वह मेरे आदर्श हैं। उन्होंने कहा कि एक अच्छी रचना में करुणा उसका जरूरी तत्व है और मेरा यह प्रयास रहता है कि मैं किसके लिए लिख रहा हूं, यह स्पष्ट रहे। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा लिखा मात्र टिप्पणी बन  कर न रह जाए बल्कि वह एक सार्थक व्यंग्य रचना बने, यही मेरा प्रयास रहता है।

          कार्यक्रम का कुशल संचालन युवा व्यंग्यकार शशि पांडे ने किया। उन्होंने कहा कि अश्विनी जी ने सही ही कहा है कि आज वटवृक्ष बनने की प्रवृत्ति आम है और जो वटवृक्ष बन गए हैं, वह दूसरों को बोनसाई बनाकर रखते हैं। श्रीमती शशि ने कहा कि जो सचमुच बड़े हो सकते हैं, उन्हें जानबूझकर पीछे धकेल दिया जाता है, इस विसंगति को बड़े ही सार्थक अंदाज़ में रखा गया है।

        इस कार्यक्रम के अध्यक्ष सुरेश कांत जी का जन्मदिन भी था जिसे उन्होंने केक काट कर मनाया। उपस्थित सभी लोगों ने उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दीं।

        कार्यक्रम का आरंभ डॉ संजीव कुमार के सरस्वती वंदना से हुआ। इसके बाद विशिष्ट अतिथियों का पुष्पगुच्छ से स्वागत इंडिया नेटबुक्स के विनय माथुर ने किया।

          विशिष्ट अतिथियों एवं सभा में उपस्थित सभी श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया बीपीए फाउंडेशन की न्यासी और इंडिया नेटबुक्स की  निदेशक सुश्री कामिनी मिश्रा जी ने।

         कार्यक्रम में व्यंग्य यात्रा की प्रबंधक श्रीमती आशा कुंद्रा और समस्त इंडिया नेटबुक्स परिवार सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

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