संवाददता: राहुल चौधरी, नमस्कार भारत

श्रीराम कॉलेज के कृषि विभाग के द्वारा बी.एस.सी. कृषि विज्ञान के छात्रों का नुन्नीखेड़ा गांव में स्थित किसानो के फार्म का शैक्षणिक भ्रमण कराया गया। शैक्षणिक भ्रमण का शुभारम्भ श्रीराम ग्रुप आफ कालिजेज के संस्थापक चेयरमैन डॉ. एससी कुलश्रेष्ठ, श्रीराम कॉलेज की प्राचार्या डॉ. प्रेरणा मित्तल एवं कृषि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मौ. नईम के द्वारा किया गया। शैक्षणिक भ्रमण का उद्देश्य कृषि पाठयक्रम के छात्रों को ग्रामीण स्तर, उन्नत खेती एवं खेती में आने वाली समस्या उनके समाधान तथा लाभ के बारे में ज्ञान प्राप्त करना था ।  

इस अवसर पर श्रीराम ग्रुप आफ कालिजेज के संस्थापक चेयरमैन डॉ. कुलश्रेष्ठ ने विद्यार्थियों को कृषि से संबंधी जानकारी देते हुये बताया की हमारे देश में कुल जमीन का 50 प्रतिशत भाग खेती में प्रयोग होता है तथा कुल जीडीपी में कृषि की 15 प्रतिशत भागीदारी है। जिसका मुख्य कारण उन्नत एवं अधिक लाभप्रद  खेती के लिए यन्त्र तथा बाजार की कमी है। अतः कृषि में रूचि रखने वाले छात्रों को ग्रामीण स्तर पर होने वाली खेती तथा किसानो को खेती में होने वाली समस्या / समाधान तथा लाभ के बारे में ज्ञान होना चाहिए तथा कैसे हम कम जमीन पर ऐसी फसलों का उत्पादन करे जिससे अधिक लाभ कमाकर देश की जीडीपी में भागीदारी को बढ़ाया जा सके। महाविद्यालय के द्वारा कृषि में रूचि रखने वाले छात्रों को प्रत्येक वर्ष ग्रामीण, कृषि विज्ञानं केंद्र एवं कृषि से संबंधित संस्थान के भ्रमण की सुविधा दी जाती है।

इस अवसर पर किसानो से बातचीत के दौरान किसानों ने छात्रों को बताया की उनके पास खेती के लिए सिर्फ एक हेक्टेयर जमीन है। वह कृषि कार्य से बहुत ही निराश थे। एक हेक्टेयर जमीन में गेहूं, सरसो आदि बो देते थे। जो पैदा हो गया उसी से संतोष करना पड़ता था। कड़ी मेहनत के बाद बमुश्किल सालभर खाने भर का अनाज होता था, लेकिन कृषि मेले में हिस्सा लेने के बाद अब वह सालभर का अनाज भी पैदा करते हैं और अपनी तमाम जरूरतों के लिए पैसा भी उनके पास मौजूद रहता है। वह बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं। सब्जी की खेती के जरिए मिलने वाले पैसे से उनका जीवन-स्तर भी ऊंचा हो गया है।

देवेश आर्य, नुन्नाखेड़ा गांव के जैविक खेती करने वाले किसान है। जो उर्द और गन्ने की जैविक खेती करते है उन्होंने छात्रों को बताया की वे 1 हेक्टेयर भूमि से जैविक गन्ना उगाकर 3 से 4 लाख रूपए की कमाई करते हैं। जिसमे वे गन्ने का उपयोग शक्कर और गुड़ बनाने में खास तौर पर करते है। इसके अलावा गन्ने के रस तथा उससे कुल्फी बनाकर बाजार में देते है। जैविक गन्ना स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होता है। इसमें लोहा, पोटेशियम, कैल्शियम, फास्फोरस और मैग्नेशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं। इतना ही नहीं, गन्ने का रस पीने से गुर्दे की पथरी आसानी से निकल जाती है। उन्होंने बताया की सबसे पहले खेत की कल्टीवेटर से अच्छी जुताई कर लेते हैं। जिसके बाद मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए रोटावेटर से जुताई की जाती है। अंतिम जुताई के पहले खेत में गोबर की खाद डालते हैं। गन्ने की बुवाई का सही समय मार्च महीने का होता है। वहीं क्षेत्र के कुछ किसान गन्ने की बुवाई अप्रैल -मई  महीने तक भी करते हैं। गन्ने की बुवाई के लिए वे नालियों का निर्माण करते हैं। नाली से नाली की दूरी 12 फीट रखी जाती हैं। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 3 फीट रखी जाती है। मध्य प्रदेश के किसान इंद्रकुमार का कहना है कि वो गन्ने की फसल के बीच अदरक, हल्दी, मूंग, गेहूं या चने जैसी अन्य फसल की खेती भी ले लेते हैं। वह अपने खेत में गन्ने की 0238, 0118  किस्म लगाते हैं. जिसका गन्ना मीठा और मध्यम साइज का रहता है।  जिससे प्रति एकड़ 250 से 300 क्विंटल की पैदावार होती है। जैविक गन्ने की खेती में कीट या अन्य बीमारियों से बचाव के लिए जैविक उपचार अपनाते हैं। उनका कहना है कि बरसात के दिनों में गन्ने की फसल में सुंडी रोग का प्रकोप रहता है।

वहीं फंगस और वायरस जनित बीमारियां भी फसल को नुकसान पहुंचाती है. इसके लिए वे धतुरे, बेसरम, आक और गौमुत्र, नीम का तेल आदि की मदद से जीवामृत बनाते हैं। जिसके छिड़काव से इन बीमारियों से निजात मिलती है।  जैविक खाद के रूप में राख फास्फेट और भंजी अमृत का प्रयोग किया जातै है। इसके अलावा गन्ने के खेत में गोबर की सड़ी खाद डालना भी सही रहता है। प्रति एकड़ में राख फास्फेट 100 किलो, भंजी अमृत 100 किलो और गोबर खाद 30 से 35 क्विंटल डाली जाती है। गन्ने की अच्छी पैदावार के लिए करीब 8 सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

 इस अवसर पर डॉ. जित्तेन्द्र आर्य ने बताया की पुष्प हमारे देश के समाज में गहराई से जुड़े हुए हैं और इनके बिना कोई भी समारोह पूर्ण नहीं होता है। हमारा घरेलू उद्योग प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है। भारत में पुष्प की खेती एक लंबे अरसे से होती रही है, लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक एक व्यवसाय के रूप में पुष्पों का उत्पादन पिछले कुछ सालों से ही प्रारंभ हुआ है। समकालिक पुष्प जैसे गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा, कार्नेशन आदि के बढ़ते उत्पादन के कारण गुलदस्ते और उपहारों के स्वरूप देने में इनका उपयोग काफ़ी बढ़ा है। पुष्प को मनुष्य के द्वारा सजावट और औषधि के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके अलावा घरों और कार्यालयों को सजाने में भी इनका उपयोग बहुतायत से होता है। मध्यम वर्ग के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक संपन्नता के कारण पुष्प बाज़ार के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और फूलों की खेती को एक विशाल बाज़ार का स्वरूप प्रदान कर दिया है। भारत ने पुष्प उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत का भविष्य में बेहतर स्कोप है क्योंकि उष्णकटिबंधीय पुष्पों की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है और भारत जैसे देश द्वारा इसका लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि हमारे यहां देशी वनस्पति जगत में उच्च स्तर की विविधता उपलब्ध है।

बृजपाल सिंह ने बताया की परपंरागत खेती में लगातार कम होते मुनाफे को देखते हुए किसानों ने अब नई और मुनाफेदार फसलों की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में किसानों को फूलो की खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा हैं। इसके लिए सरकार भी किसानों को अपने स्तर पर सब्सिडी प्रदान करती है। गुलाब के फूल के अलावा इसके डंठल भी बिकते हैं। इनकी बातो के मुताबिक, एक हेक्टेयर में एक किसान आराम से 1 लाख रुपये लागत लगाकर गुलाब की खेती से 5 से 7 लाख रुपये तक का मुनाफा हासिल कर सकता है गुलाब के फूलों का उपयोग सजावट और सुगंध के अलावा अन्य कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाने के लिए होता है। गुलाब के फूलों से रोज वाटर यानी गुलाब जल, गुलाब इत्र, गुलकंद और कई तरह की औषधियां भी बनाई जाती हैं। कई कंपनियां किसानों से सीधे फूल खरीदती हैं और उन्हें इसका अच्छा खासा भुगतान भी करती हैं। गुलाब की खेती से किसान 8 से 10 साल तक लगातार मुनाफा कमा सकता हैं. इसके एक पौधे से आप तकरीबन 2 किलोग्राम तक फूल हासिल कर सकते हैं. ग्रीनहाउस और पॉली हाउस जैसी तकनीक आने के बाद इस फूल की खेती अब साल भर की जा सकती हैं। गुलाब की खेती हर एक तरह की मिट्टी में की जा सकती है। हालांकि, बुवाई दोमट मिट्टी में इसके पौधों का विकास बेहद तेजी से होता है। गुलाब के पौधे लगाते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि, इसकी खेती जल निकासी वाली भूमि होनी चाहिए। इसके अलावा इसके पौधे ऐसी जगह लगाएं जहां ठीक मात्रा में धूप पहुंचती हो. बढ़िया धूप मिलने से पेड़ में लगने वाली कई बीमारियां नष्ट हो जाती हैं। खेत में पौधे लगाने के पहले 4 से 6 सप्ताह में ही नर्सरी में बीज की बुवाई करें। नर्सरी में बीज से पौधा तैयार होने के बाद इसे खेतों में लगा दे।.इसके अलावा किसान कलम विधि से गुलाब के पौधे की खेती कर सकते हैं. पौधे लगाने के बाद हर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई जरूर करें.

इस अवसर पर श्रीराम कॉलेज की प्राचार्या डॉ. प्रेरणा मित्तल ने बताया की  कृषि के छात्रों को संश्था के द्वारा प्राप्त ज्ञान के साथ-साथ खेती से जुड़े ज्ञान की जानकारी होना जरुरी है जिससे की पढाई के बाद में छात्रों के द्वारा खेती समन्धित समस्याओ से समाधान पा सके। खेती में प्रयोग होने वाले केमिकल को कम से कम प्रयोग कर आर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिल सके।

इस अवसर पर बीएससी कृषि विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. नईम ने बताया की भारत के तमाम किसान नई तकनीक से उन्नत खेती कर रहे हैं। वे कड़ी मेहनत करके खेती के जरिए परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ ही समाज को भी नई दिशा दे रहे हैं। इन किसानों को समाज में खूब सम्मान मिलता है। दूसरे किसान उन्हें अपना वैज्ञानिक मानने लगते हैं और उनके बताए अनुसार खेती करने को तैयार रहते हैं। तथा उनके द्वारा दी जाने वाली जानकारी छात्रों को मिलनी जरुरी है क्योकि वह एक अनुभव वाला ज्ञान है।  

इस भ्रमण के छात्रों को डॉ. प्रवीण मालिक, डॉ. राजकुमार एवं आजाद के द्वारा निर्देशित किया गया।

 छात्रों ने भ्रमण के दौरन गांव के किसान डॉ. जित्तेन्द्र आर्य, बृजपाल सिंह, रविपाल, जितिन धनकड़, अशोक कुमार, मोनू कुमार, सर्वेश पाल, रविंद्र सिंह, देवेश आर्य से ज्ञान प्राप्त किया।

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