संवाददाता: आलोक शुक्ला, नमस्कार भारत

कभी आपने सोचा है कि किसी लेखक के किरदार आपके सामने आकर सवाल जवाब करने लग जाएं तो कैसा होगा ? ये सब हुआ आज शाम एनएसडी के सम्मुख के मंच पर जब समय के आईने में मन्नू भंडारी की नायिकाएं न केवल स्वयं से सवाल ही नहीं करती हैं बल्कि अपनी सर्जक मन्नु जी से उनके जीवन में रची गई विषमताओं पर सवाल भी खड़े करती हैं और अगर वे विषमताएं न होती तो क्या होता इस पर भी विचार करती हैं तो इसी के साथ एक समापम भी करती हैं कि मन्नू जी अपनी नायिकाओं को अपने स्वयं के आकाश को चुनने का मौका ही नहीं देती बल्कि समाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का साहस भी प्रदान करती हैं फिर वे चाहें आपका बंटी की शकुन हो या गीत का चुम्बन की नायिका या कमज़ोर लड़की की कहानी की लड़की या दीवार, बच्चे और बसाहट या अभिनेता या रजनीगंधा की नायिका या नयी नौकरी या ईशा का इंसाफ या फिर स्त्री सुबोधनी की सुबोधनी।

इन नौ कहानियों की नायिकाओं को एक धागे में बखूबी पिरोया प्रियदर्शन जी ने अपनी कलम से और सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नु भंडारी के जन्मोत्सव पर  हंसाक्षर ट्रस्ट की ओर से 3 अप्रैल की शाम इन नायिकाओं को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख के मंच पर उतारा कहानी के रंगमंच के जनक देवेंद्र राज अंकुर ने और इन नायिकाओं को जिंदा किया तीन महिला पात्रों रचिता, गौरी और अदिति ने  तथा सहयोगी पुरुष पात्रों को जीवित किया अमित सक्सेना  ने ।

मंच पर बिना किसी ताम झाम के महज़ चार कुर्सियों और चार पात्रों से मंचित नौ कहानियों के करीब एक घंटे के मंचन में दर्शक जैसे खुद मन्नु भंडारी की कहानियों के किरदार हो गए थे।

प्रस्तुति में संगीत राजेश सिंह ने दिया, उसे ऑपरेट किया सहज ने, राघव प्रकाश ने प्रकाश सज्जा की और प्रोडक्शन संभाला डॉ प्रकाश झा ने।

इसके पूर्व एक परिचर्चा “बेटियां मन्नू की” विषय पर की गई। जिसका संचालन रश्मि भारद्वाज ने बखूबी किया। चर्चा में वरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया जी ने मन्नू भंडारी जी को राजा भरथरी की एक कहानी से उनके बारे में बयान किया और कहा कि मन्नू भंडारी के लेखन में उनकी नायिकाएं दमक कर पूछती हैं कि मैं कौन हूं, उनकी नायिकाएं अपना ताजमहल ख़ुद बनाती हैं। मन्नू जी की नायिकाएं सामाजिक दायरों  को तोड़ती हैं ,उन्होंने उनकी कहानियों के बरक्स कहा कि मन्नू जी ने मानवीय त्रासदी के हर पहलू पर लिखा है।

इसी प्रकार युवा लेखिका प्रकृति ने अपनी बात कहते हुए कहा कि जब नायक के नायकत्व की चर्चा होती थी तब मन्नू भंडारी ने नायिका के नायकत्व की चर्चा की जो अपने आप में बड़ी बात थी

तो वहीं जाने माने लेखक विवेक मिश्रा ने कहा कि मन्नू भंडारी की नायिकाएं अपने जीवन के प्रति निर्णय करने में बहुत द्वंद नहीं पालती हैं वे निश्चयात्मक हैं और अकेले अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं। चर्चा के उपरांत श्रोताओं को भी चर्चा में शामिल करते हुए उनके सवालों और उनकी बातों को शामिल किया गया। जहां वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया, वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक शुक्ला सहित कई लोगों ने अपनी बात रखी।

अंत में मन्नू भंडारी जी की बेटी रचना यादव ने सबका आभार व्यक्त किया इस दौरान वे अपनी मां की याद में किए गए कार्यक्रम में भावुक भी हो गईं। ये भी संयोग की बात है कि आज ही हिंदी रंगमंच दिवस भी था और इस मौके पर इस तरह का साहित्यिक मंचन जहां सम्मुख के मंच में पैर रखने की भी जगह नहीं थी , इसे देखकर रचना यादव ने अगली बार बड़े मंच पर कार्यक्रम रखने का वादा किया।

( समीक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी लेखक निर्देशक और पत्रकार हैं)

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